तुषार उप्रेती की किताब - छुटपन के दिन

No Comments

Goodreads: 

...........................................................................................................................................
एक ऐसे वक्त में जब भारत में बचपन को लेकर कई आंदोंलन चल रहे हैं। ये सच है कि छुटपन के दिन को प्रकाशित करना बेहद मुश्किल काम था। प्रकाशकों के निराशाजनक रवैये के बाद लेखक ने इसे स्वंय प्रकाशित किया तो नतीजा उम्मीद से बेहतर साबित हुआ। जिस बाज़ार के ना होने की बात प्रकाशक कर रहे थे उसी बाज़ार में किताब बेस्ट सेलर बनी।
पांच छोटी कहानियां जो अलग अलग रेशों की तरह बुनी गई हैं और उनसे मिलकर छुटपन के दिन का रचना संसार बना है।
ये कहानी श्रृंख्ला की पहली कड़ी है। या यूं कहें कि पहला पार्ट है। इसके बाद जो किरदार हमने देखे सुने हैं वो कैसे आगे बढ़ते हैं। ये देखना दिलचस्प होगा।
हर कहानी को बच्चों के बीच किये स्टोरी सैशन के जरिये आज़माया जा चुका है।
हाथ की सफाई, मस्ताना, पेट-पेजा, मिट्टी का शेर, और टिल्लू की साइकिल ये कहानियां किसी फंतासी की उपज नहीं है। हमारे अपने ही जीवन से ली गई हैं। जहां हाथ ना धोने की वजह से बच्चे बिमार पड़ते हैं और कई बार डायरिया जैसी बिमारियों के चलते जान गंवा देते हैं। ये एक ऐसी समस्या है जो वैश्विक स्तर पर हावी है। वहां हाथ की सफाई का उप्पू स्वामी कैसे हाथ धोने के बारे में सीखता है कहानी का पेंच ये है!
ठीक इसी तरह टिल्लू की साइकिल एक बच्चे के साइकिल ना खरीदन पाने की विडंबना के बाद, सही खान पान का नतीजा बताती है।
मस्ताना जंगल और इंसानी के बीच बढ़ते खतरों को बेहद हल्के से रेखांकित करती है।
पेट पूजा  आजकल के दुनियावी छलावों के बीच बच्चों के करप्ट होने और फिर सही रास्ते पर लौट आने की बात कहती है।
मिट्टी का शेर पीका-डिज़आर्डर के बारे में रोचक तरह से संकेत करती है।
ये कहानियां उनके लिये भी है जो खालिस कहानी पढ़ना चाहते हैं और बचपन को याद करना चाहते हैं। ये कहानियां उनके लिये भी हैं जो खासतौर से घरों मे दादी-नानी के अभावों से जूझ रहे हैं और बच्चों के कहानी सुनाने में विश्वास नहीं रखते हैं।

लेकिन सबसे खास ये कहानियां उन बच्चों के लिये है। जो विज्ञापनों की दुनिया में भी कहीं पीछे छूट गये हैं। जो स्कूली तंत्र के बीच में सीख या समझ नहीं पा रहे और कक्षा में हाथ खड़ा करने से घबरा रहे हैं क्योंकि जो भाषा वो जानते हैं वो टीचरों को समझ नहीं आती और जो टीचर को आती है वो बच्चा नहीं समझ पा रहा है। ऐसे में छुटपन के दिन की भूमिका और जरुरत बेहद जरुरी हो जाती है।

..............................................................................................................................................
Buy the Book :

..............................................................................................................................................

लेखक परिचय  


A Writer , A child , An Explorer
Everybody is here for a reason and Tushar is searching the meaningfulness in his life. Some answers he know, some he is searching. To cut short in brief let's come to the point. He is the Writer whose First book "The days of childhood" making headlines all over the media. It’s a bestselling now. The first feature film As a Casting Director-Asst.Writer-Asst.Director : ZED PLUS is released In November 2014.He is Making corporate films for clients all over the country and Helping children to read-write makes him educated. The next few projects are on the way such as a feature film where he is the Screenplay and dialouge writer and a TV Mini series where his extensive historic research helps to make an epic saga.
He used to be a TV journalist and that's why his thirst for creativity never dies. Besides this he is the proprietor of PIXELOSOME PRODUCTIONS ,where he creates Corporate Films/Documentary for clients and he is also associated with many welfare society as an ADVISOR and making their curriculum

......................................................................................................................................................
:)
:(
=(
^_^
:D
=D
|o|
@@,
;)
:-bd
:-d
:p