तुर्की कवि ओरहान वेली की कविताओं की अपनी एक ख़ास शैली है। वह कविताओं में क्लिष्ट बिंबो और अलंकारों के हिमायती नहीं। सीधी सहज भाषा में लिखी उनकी कविताएँ आज भी प्रासंगिक लगती हैं, ज़ेहन में बनी रही हैं देर तक और चुपके से दिल में उतर आती हैं। और "सब कुछ होता है अचानक.... और अचानक प्रेम अचानक ख़ुशी.." पढ़ें ओरहान वेली की कविताएँ सिद्धेश्वर सिंह के जादुई अनुवाद में।
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०१-जीवन इसी तरह
इस घर में एक कुत्ता था
खूब झबरैला
नाम था जिसका चिनचान
वह गुजर गया।
इस घर में
एक बिल्ली भी हुआ करती थी : माविश
वह गुम हो गई कहीं।
इस घर में एक बेटी भी थी
उसका ब्याह हो गया।
कई खट्टे -मीठे हादसे हुए
इस घर में पिछले बरस।
हाँ , ऐसा ही रहा
कुछ इसी तरह|
ऐसे ही चलता है जीवन
इसी तरह।
०२-मुफ्त की चीजों के लिए
हम जीते हैं मुफ़्त की चीजों के लिए
हवा मुफ़्त में मिल जाती है
बादल भी हैं मिल जाते हैं मुफ़्त।
पहाड़ और खड्ड भी उपलब्ध हैं फोकट में
बारिश और कीचड़ मुफ्त
कार के बाहर की दुनिया मुफ्त
सिनेमाघरों के प्रवेशद्वार मुफ़्त
दुकानों की खिड़किया मुफ़्त में झाँकने के वास्ते।
ऐसा नहीं है कि ब्रेड और पनीर मिल जाता है मुफ्त
लेकिन खारा पानी तो मिल ही जाता है मुफ़्त में।
आजादी की कीमत होती है आपका जीवन
लेकिन गुलामी मिल जाती है मुफ़्त में।
हम मुफ़्त की चीजों के लिए
जिए जा रहे है मुफ़्त में।
०३-अली रज़ा और अहमद की कथा
कैसी आश्चर्यजनक कथा है यह
अली रज़ा और अहमद की!
एक रहता है गाँव में
और दूसरा शहर में।
हर सुबह
अली रज़ा जाता है
गाँव से शहर की ओर
और अहमद
शहर से गाँव की तरफ।
०४-भीतर
अच्छी होती हैं खिड़कियाँ
आप इनसे देख सकते हैं
चिड़ियों के गुजरते हुए दल।
कम से कम
इतना तो देखा ही जा सकता है
खिड़कियों से
बनिस्बत चार दीवारों के।
०५-मछुआरे
हमारे मछुआरे
वैसे नहीं होते
जैसे दिखाए जाते हैं किताबों में।
वे नहीं गाते कोरस
नहीं गाते समूहगान।
०६-हो सकता है
पहाड़ी पर बने
उस घर की बती
क्यों जली हुई है
आधी रात के बाद भी?
क्या वे आपस में बतिया रहे होंगे
या खेल रहे होंगे बिंगो?
या और कुछ
कुछ और चल रहा होगा वहाँ...
अगर वे बातें कर रहे होंगे
तो क्या होगा उनकी बातचीत का विषय?
युद्ध?
टैक्स?
शायद वे बतिया रहे होंगें बिना किसी विषय के
बच्चे सो गए होंगे
घर का आदमी अख़बार पढ़ रहा होगा
और स्त्री सिल रही होगी कपड़े।
हो सकता है
ऊपर बताई गई बातों में से
कुछ भी न कर रहे हों वे।
कौन जानता है?
हो सकता है
यह भी हुआ हो कि वे जो कर रहे हैं
उसे काट दिया गया हो सेंसर की कैंची से।
०७-तुलना
मुझे पसंद हैं सुन्दर स्त्रियाँ
मुझे कामकाजी स्त्रियाँ भी पसंद हैं
लेकिन
मुझे ज्यादा पसंद हैं सुन्दर कामकाजी स्त्रियाँ।
०८-यात्रा
अच्छे होते हैं भोजपत्र के वृक्ष
सदैव।
जब हम पहुँचने वाले होते हैं
आखिरी पड़ाव पर
वे लगने लगते हैं और सुंदर।
मैं हो जाना चाहता हूँ नदी
मैं हो जाना चाहता हूँ भोजवृक्ष।
०९-व्यस्तता
सोचती हैं सुंदर स्त्रियाँ
कि उन्हीं के बारे में
लिखता हूँ मैं अपनी कवितायें।
मैं परेशान हो जाता हूँ
यह सब जान कर।
मुझे पता है
मैं इसलिए लिखता हूँ
ताकि रख सकूँ खुद को व्यस्त।
१०-अचानक
सब कुछ होता है अचानक
अचानक उतरता है धरती पर उजाला
अचानक उभर आता है आसमान
अचानक मिट्टी के भीतर से
उग आता है पानी का एक सोता
अचानक दिखाई दे जाती है कोई बेल
फूट आती हैं कलियाँ अचानक
अचानक प्रकट हो जाते हैं फल।
अचानक !
अचानक !
सब कुछ अचानक !
अचानक लड़कियाँ
लड़के अचानक
- सड़कें
- बंजर
- बिल्लियाँ
- लोगबाग.....
और अचानक
- प्रेम
अचानक
- खुशी
११- मैं,ओरहान वेली
मैं,ओरहान वेली
प्रसिद्ध रचनाकार
'सुलेमान एफांदी को शान्ति मिले'शीर्षक कविता का।
सुना गया है कि सबको उत्सुकता है
मेरे निजी जीवन के बारे में जानकारी की।
अच्छा, तो मुझे कह लेने दो:
सबसे पहले तो यह कि मैं एक मनुष्य हूँ , सचमुच का
नहीं हूँ मैं; सर्कस का जानवर या ऐसा ही कुछ और
मेरी एक नाक है
कान भी हैं
हालांकि वे बहुत सुघड़ नहीं हैं।
मैं एक घर में रहता हूँ और कुछ कामधाम भी करता ही हूँ।
मैं अपने सिर पर बादलों की कतार लिए नहीं फिरता हूँ
न ही मेरी पीठ पर चस्पां है भविष्यवाचन का इश्तेहार
मैं इंगलैंड के राजा जार्ज की तरह नफासत वाला नहीं हूँ
और न ही अभिजात्य से भरा हूँ
अस्तबल के हालिया मुखिया सेलाल बायार की भाँति।
मुझे पसंद है पालक
मैं दीवाना हूँ पफ़्ड चीज़ पेस्ट्रीज का
दुनियावी चीजों की मुझे चाह नहीं है
बिल्कुल नहीं दरकार।
ओकाते रिफात और मेली वेदे
ये हैं मेरे सबसे अच्छॆ दोस्त
मैं किसी से प्यार भी करता हूँ
बहुत ही सम्मानित है वह
लेकिन मैं बता नहीं सकता हूँ उसका नाम
चलो, साहित्य के आलोचकों को ही करने दो यह गुरुतर कार्य।
महत्वहीन चीजों में व्यस्त रखता हूँ मैं स्वयं को
बनाता रहता हूँ योजनायें
और क्या कहूँ?
शायद और भी हजारों आदतें हैं मेरी
लेकिन उनको सूचीबद्ध करने से क्या लाभ
वे सब मिलती जुलती हैं एक दूसरे से -
एक से होता है दूसरे का भान
और दूसरे से पहले का।
१२- शराब घर
नहीं करता अब
उसे प्रेम
फिर क्यों घूमता हूँ हर रात
शराबघरों में !
और पीता हूँ हर रात
उसकी याद में
उसे याद करते - करते - करते!
१३- अच्छा मौसम
इस अच्छे मौसम ने तबाह कर दिया मुझे
इसी मौसम में
मैंने दिया था इस्तीफा
अपनी सरकारी नौकरी से
इसी मौसम में
मैं हुआ था तंबाकू की लत का शिकार
इसी मौसम में
मैं पड़ गया था प्यार में
इसी मौसम मैं
मैं भूल गया घर ले जाना नून तेल
हाँ, ऐसे ही मौसम में
कवितायें लिखने की व्याधि ने
मुझे ग्रस्त किया दोबारा बार - बार
इस अच्छॆ मौसम ने
तबाह कर दि्या मुझे
सचमुच तबाह।
१४- रेलगाड़ी की आवाज
हालत खस्ता है मेरी
कोई सुंदर स्त्री नहीं आसपास
जो दिल को दे सके कुछ दिलासा
इस शहर में
कोई पहचाना चेहरा भी नहीं
जब भी मैं सुनता हूँ रेलगाड़ी की आवाज
मेरी दो आँखें
बन जाती हैं दो प्रपात।
१५- कीड़
सोचो नहीं
बस इच्छा करो
देखो, कीड़े भी करते हैं ऐसा।
१६- मैं दूर नहीं
मैं दूर नहीं हूँ तुमसे
तुम्हारी आँखें देखना जानती हैं; मैं हूँ तुम्हारी दृष्टि में
शायद तुमसे ज्यादा करीब हूँ तुम्हारे मैं
मैं हूँ तुम्हारे हृदय की हर धड़कन में।
१७- अकेलेपन की कविता
जो अकेले नहीं रहते कभी उन्हें क्या पता
कि चुप्पी हो सकती है किसी के लिए कितनी भयावह
कैसे कोई खुद से ही करता है वार्तालाप
कैसे कोई दौड़ लगाता है आईनों की ओर
किसी अस्तित्व के लिए तड़प के मायने,
नहीं जानते वे , नहीं , बिल्कुल नहीं।
१८- कुछ तो है
क्या रोजाना की तरह सुन्दर है यह समुद्र ?
क्या हर समय ऐसा ही दिखाई देता है आकाश?
यह फर्नीचर, ये खिड़कियाँ
क्या ये रहे हैं सर्वदा ऐसे ही सुरूप?
नहीं,
ईश्वर की शपथ नहीं
कुछ तो है जो हो रहा है कुछ अजीब।
१९- प्रस्थान
जाते हुए जहाज की ओर ताकता हूँ मैं
स्वयं को समुद्र में झोंक नहीं दूँगा मैं
खूबसूरत है यह संसार
मेरे भीतर घर किए बैठा है मर्दानापन
रो भी तो नहीं सकता मैं।
२०- सड़क पर चलना
जब भी सड़क पर चलता हूँ मैं , अकेले
मैंने गौर किया है कि मुस्कुरा रहा हूँ मैं
मैं सोचता हूँ कि लोगों को लगता होऊंगा मैं पागल
और मैं मुस्कुरा देता हूँ।
कवि परिचय
तुर्की कवि ओरहान वेली (१९१४ - १९५०) ऐसा कवि जिसने मात्र ३६ वर्षों का लघु जीवन जिया ,एकाधिक बार बड़ी दुर्घटनाओं का शिकार हुआ , कोमा में रहा और जब तक जिया सृजनात्मक लेखन व अनुवाद का खूब सारा काम किया।
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अनुवादक परिचय
सिद्धेश्वर सिंह
जन्म :11 नवम्बर 1963
शिक्षा: एम०ए०, पी-एच०डी०
2012 एक कविता संग्रह 'कर्मनाशा' प्रकाशित। देश भर की प्रतिष्ठित पत्र - पत्रिकाओं में कवितायें, आलेख , अनुवाद आदि निरन्तर छपते रहे हैं। विश्व कविता के अनुवाद में विशेष रुचि। इंटरनेट पर 'कर्मनाशा' और 'कबाड़ख़ाना' ब्लॉग के माध्यम से सक्रियता। फिलहाल उत्तराखंड प्रान्तीय उच्च शिक्षा सेवा में एसोशिएट प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत।
संपर्क:
ए-03, ऑफिसर्स कालोनी,टनकपुर रोड, अमाऊँ
पो- खटीमा (जिला -ऊधमसिंह नगर) उत्तराखंड
पिन- 262308 फोन / मोबाइल 05943-251593 / 09412905632
ईमेल- sidhshail@gmail.com
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